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मंगलवार, 14 जून 2011

सिलसिला रुक जाये शायद.....

सिलसिला रुक जाये शायद आपसी तकरार का.
रुख अगर हम मोड़ दें बहती नदी की धार का.

जब तलक सर पे हमारे छत सियासत की रहेगी
टूटना मुमकिन नहीं होगा किसी दीवार का.

मार्क्स, गांधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.




बैठे-बैठे देख लेते हैं ज़माने भर का हाल
मुंतजिर रहते हैं फिर भी सुब्ह के अखबार का.

पेड़, पौधे और परिंदे सब के सब खामोश हैं
जब से आया है यहां मौसम समंदर पार का.

बोलती थी आंख उसकी और ज़बां खामोश थी
हमने छेड़ा था जिसे वो तार था बेतार का.

----देवेंद्र गौतम 

9 टिप्‍पणियां:

  1. मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
    सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.

    जब तलक सर पे हमारे छत सियासत की रहेगी
    टूटना मुमकिन नहीं होगा किसी दीवार का.

    बहुत ख़ूब !
    ख़ूबसूरत अश’आर !

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  2. जब तलक सर पे हमारे छत सियासत की रहेगी
    टूटना मुमकिन नहीं होगा किसी दीवार का.

    मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
    सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.
    देवेन्द्र जी इस ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें...

    नीरज

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  3. सिलसिला रुक जाये शायद आपसी तकरार का

    ग़ज़ल में, यह मिसरा अपनी बात
    कहे देना चाहता है .... !
    और
    मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
    सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.
    हालात को जी कर कहे गए शेर
    बिलकुल इसी तरह के कामयाब शेर हुआ करते हैं ..वाह !!
    पूरी ग़ज़ल
    आपकी उम्दा सोच की जानिब इशारा कर रही है जनाब .
    मुबारकबाद .

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  4. मार्क्स, गाँधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
    सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.

    बहुत बढ़िया बात कही है सटीक एकदम ..खूबसूरत गज़ल

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  5. बैठे-बैठे देख लेते हैं ज़माने भर का हाल
    मुंतजिर रहते हैं फिर भी सुब्ह के अखबार का.

    पेड़, पौधे और परिंदे सब के सब खामोश हैं
    जब से आया है यहां मौसम समंदर पार का.
    bahut acchi ghazal

    good wishes

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  6. मार्क्स, गांधी, लोहिया, सुकरात, रूसो, काफ्का
    सबपे भारी पड़ रहा है फलसफा बाज़ार का.

    गज़ब गज़ब...मुबारकबाद इस उम्दा गज़ल के लिए...

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  7. पेड़, पौधे और परिंदे सब के सब खामोश हैं
    जब से आया है यहां मौसम समंदर पार का.
    वाह,खूब शेर कहा है आपने.
    पूरी ग़ज़ल बढ़िया है.

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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