ख्वाहिशों का इक छलकता जाम था.
इक परी थी और इक गुलफाम था.
हर वरक पर भीड़ थी, कोहराम था
हाशिये में चैन था, आराम था.
हर अंधेरे घर में उसका काम था.
उसके अन्दर रौशनी का जाम था.
धीरे-धीरे हिल रही थीं पुतलियां
उसकी आँखों में कोई पैगाम था.
जिसने मिट्टी में मिला डाला मुझे
दिल का सरमाया उसी के नाम था.
आज उसका नाम सबके लब पे है
कल तलक वो आदमी गुमनाम था.
मुझको उसकी और उसे मेरी तलब
मैं भी प्यासा वो भी तश्नाकाम था.
हर फ़रिश्ते पर उठी है उंगलियां
क्या हुआ गर मैं भी कुछ बदनाम था.
------देवेंद्र गौतम
इक परी थी और इक गुलफाम था.
हर वरक पर भीड़ थी, कोहराम था
हाशिये में चैन था, आराम था.
हर अंधेरे घर में उसका काम था.
उसके अन्दर रौशनी का जाम था.
धीरे-धीरे हिल रही थीं पुतलियां
उसकी आँखों में कोई पैगाम था.
जिसने मिट्टी में मिला डाला मुझे
दिल का सरमाया उसी के नाम था.
आज उसका नाम सबके लब पे है
कल तलक वो आदमी गुमनाम था.
मुझको उसकी और उसे मेरी तलब
मैं भी प्यासा वो भी तश्नाकाम था.
हर फ़रिश्ते पर उठी है उंगलियां
क्या हुआ गर मैं भी कुछ बदनाम था.
------देवेंद्र गौतम
हर वरक पर भीड़ थी, कोहराम था
जवाब देंहटाएंहाशिये में चैन था, आराम था
मुझको उसकी और उसे मेरी तलब
मैं भी प्यासा वो भी तश्नाकाम था.
वाह देवेंद्र जी बहुत ख़ूब !
हर फ़रिश्ते पर उठी है उंगलियां
क्या हुआ गर मैं भी कुछ बदनाम था
क्या बात है !