दरो-दीवार पे अब कोई इबारत न रही.
जिसकी तामीर हुई थी वो इमारत न रही.
दिल के रिश्ते न रहे, दर्द की हिक़मत न रही.
अब यहां मिलने-मिलाने की रवायत न रही.
इक बयाबां मेरे अंदर ही सिमट आया है
अब कहीं दूर भटकने की ज़रुरत न रही.
जबसे हासिल हुआ गुमगश्ता ठिकानों का पता
अपने हाथों की लकीरों से शिकायत न रही.
वही अशआर तो तारीख़ में रौशन होंगे
जिनसे लिपटी हुई जंजीरे-रवायत न रही.
ये कोई जिंस नहीं जिसके खरीदार मिलें
आज बाज़ार में अहसास की कीमत न रही.
.जबसे निकला हूं रेफाक़त के खंडर से गौतम
अब मुझे अपने रफ़ीक़ों की ज़रूरत न रही.
----देवेन्द्र गौतम
जिसकी तामीर हुई थी वो इमारत न रही.
दिल के रिश्ते न रहे, दर्द की हिक़मत न रही.
अब यहां मिलने-मिलाने की रवायत न रही.
इक बयाबां मेरे अंदर ही सिमट आया है
अब कहीं दूर भटकने की ज़रुरत न रही.
जबसे हासिल हुआ गुमगश्ता ठिकानों का पता
अपने हाथों की लकीरों से शिकायत न रही.
वही अशआर तो तारीख़ में रौशन होंगे
जिनसे लिपटी हुई जंजीरे-रवायत न रही.
ये कोई जिंस नहीं जिसके खरीदार मिलें
आज बाज़ार में अहसास की कीमत न रही.
.जबसे निकला हूं रेफाक़त के खंडर से गौतम
अब मुझे अपने रफ़ीक़ों की ज़रूरत न रही.
----देवेन्द्र गौतम
वही अशआर तो तारीख़ में रौशन होंगे
जवाब देंहटाएंजिनसे लिपटी हुई जंजीरे-रवायत न रही.
ये कोई जिंस नहीं जिसके खरीदार मिलें
आज बाज़ार में अहसास की कीमत न रही.
khoobsoorat matle se shuru hui ghazal ek safar tai karke jab in ash'aar tak pahunchti hai to bar bar khud ko padhne ke liye majboor karti hai
bahut khoob
बहुत खूब सर,लेकिन हम हिंदी वालों को उर्दू-फारसी की कम ही जानकारी है .कुछ हमारे जैसे लोगों का भी ख्याल रखें सर.
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsoorat gazal...jaane kaise kaise taar ched gaee....
जवाब देंहटाएंशारदा अरोड़ा जी!....इस्मत जैदी जी!.... हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया!.... संजय जी! मैं भी हिंदी वाला ही हूँ. मेरी ज्यादातर ग़ज़लें बोलचाल की भाषा में हैं. वैसे एक बात बता दूँ.....शायरी जिंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों को संकेतों के जरिये अभिव्यक्त करती है और अपनी भाषा खुद बनाती आती है. शब्दों का चयन रचनाकार नहीं करता. रचना खुद अपने लिए उपयुक्त शब्द लिए तलाश लेती है. मैं जानबूझ कर फारसी शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता. आप थोडा ध्यान केंद्रीत कर पढ़ें तो बात समझ में आएगी. आपकी परेशानी के लिए क्षमा चाहता हूँ. वैसे मेरे ब्लॉग पर आये. आपका स्वागत है. स्नेह बनाये रखें.
जवाब देंहटाएंये कोई जिंस नहीं जिसके खरीदार मिलें
जवाब देंहटाएंआज बाज़ार में अहसास की कीमत न रही.
बेहद शानदार अशआर.....
बहुत खूब कहा है आपने ...।
आदरणीय भाईजी देवेन्द्र गौतम जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
आपकी ग़ज़लें पढ़ना सचमुच बहुत अच्छे अनुभव से गुज़रना होता है ।
दिल के रिश्ते न रहे, दर्द की हिक़मत न रही
अब यहां मिलने-मिलाने की रवायत न रही
बहुत भीतर तक छूने वाला शे'र है …
ये कोई जिंस नहीं जिसके खरीदार मिलें
आज बाज़ार में अहसास की कीमत न रही
आह ऽऽ !
एक से एक नायाब नगीना है हर शे'र
आभार !
♥ महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! ♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार