हर लम्हा टूटती हुई मुफलिस की आस हो.
क्या सानेहा हुआ है कि इतने उदास हो.
सच-सच कहो कि ख्वाब में डर तो नहीं गए
आंखें बुझी-बुझी सी हैं कुछ बदहवास हो.
सीने में ख्वाहिशों का समंदर है मौजज़न
तुम फिर भी रेगजारे-तमन्ना की प्यास हो.
बाहर चलो के लज्ज़तें बिखरी हैं चार-सू
मौसम तो खुशगवार है तुम क्यों उदास हो.
वो दिन गए कि तुमसे मुनव्वर थे मैक़दे
अब तुम सियाह वक़्त का खाली गिलास हो.
जिस पैरहन में आबरू रक्खी थी चाक है
यानी हिसारे-वक़्त में तुम बेलिबास हो.
गौतम ग़मों की धूप से कोई गिला न कर
शायद ख़ुशी के बाब का ये इक्तेबास हो.
----देवेंद्र गौतम
ये तो यूं लग रहा है जैसे खुद से बातें करते हों
जवाब देंहटाएंतन्हाई ही हर सू आस पास हो ....
खूबसूरत ग़ज़ल
शारदा जी!
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी बहुत सटीक लगी. आपने उन क्षणों को और उस मिजाज़ को महसूस कर लिया जिसमें इस ग़ज़ल का सृजन हुआ था. एक रचनाकार ही किसी रचना की इस बारीकी को समझ सकता है. मैं आपका शुक्रगुजार हूं और आपके स्नेह का आकांक्षी भी.
---देवेंद्र गौतम
गौतम ग़मों की धूप से कोई गिला न कर
जवाब देंहटाएंशायद ख़ुशी के बाब का ये इक़्तेबास हो.
बेहतरीन ग़ज़ल का ख़ूबसूरत मक़्ता
बहुत उम्दा !
गौतम ग़मों की धूप से कोई गिला न कर
जवाब देंहटाएंशायद ख़ुशी के बाब का ये इक्तेबास हो
हर लम्हा टूटती हुई मुफलिस की आस हो
क्या सानेहा हुआ है कि इतने उदास हो
बहुत खूब,गौतम जी.
एक और उदास ग़ज़ल.
लेकिन बहुत ही खूबसूरत.
Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.
{SHELLEY}
जिस पैरहन में आबरू रक्खी थी चाक है
जवाब देंहटाएंयानी हिसारे-वक़्त में तुम बेलिबास हो.
कमाल के भाव लिए है ग़ज़ल.
बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया गज़ल. मतले से जो समां बंधा वो मकते तक कायम रहा. सभी अशआर उम्दा.
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