आदमी के भेष में शैतान था.
हम समझते थे कि वो भगवान था.
एक-इक अक्षर का उसको ज्ञान था.
उसके घर में वेद था, कुरआन था.
सख्त था बाहर की दुनिया का सफ़र
घर की चौखट लांघना आसान था.
ख्वाहिशें मुर्दा पड़ी थीं जा-बा-जा
दिल भी गोया एक कब्रिस्तान था.
रूह की कश्ती में कुछ हलचल सी थी
जिस्म के अंदर कोई तूफ़ान था.
हर कदम पर था भटक जाने का डर
शहर के रस्तों से मैं अनजान था.
ख्वाहिशों की दौड़ में शामिल थे हम
दूर तक फैला हुआ मैदान था.मैं निहत्था था मगर लड़ता रहा
चारो जानिब जंग का मैदान था.
मौत की पगडंडियों पे भीड़ थी
जिन्दगी का रास्ता वीरान था.
अपनी किस्मत आप ही लिखता था मैं
जब तलक मेरा समय बलवान था.
इतनी बेचैनी भी होती है कहीं
मैं समंदर देखकर हैरान था.
---देवेंद्र गौतम
बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!!
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आदमी के भेष में शैतान था
हम समझते थे कि वो भगवान था
एक-इक अक्षर का उसको ज्ञान था
उसके घर में वेद था, कुरआन था
वाह वाह !
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है
मुबारकबाद !
.
जवाब देंहटाएं♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
वाह!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल...
रूह की कश्ती में कुछ हलचल सी थी
जिस्म के अंदर कोई तूफ़ान था.
चैत्र नवरात्र और नव संवत की आपको मंगलकामनाएं..
सादर.
बेहतरीन ग़ज़ल .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंवाकई खूबसूरत। मेरा पसंदीदा - सख्त था बाहर की दुनिया का सफ़र
जवाब देंहटाएंघर की चौखट लांघना आसान था
बहुत खूब ...सुंदर गजल
जवाब देंहटाएंगौतम भाई,
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखते हैं आप |ईश्वर आप की लेखनी को दिन प्रति दिन समृधी प्रदान करें |
सख्त था बाहर की दुनिया का सफ़र
जवाब देंहटाएंघर की चौखट लांघना आसान था.
बिल्कुल सच्ची बात कही आप ने लेकिन चौखट लाँघते वक़्त ये बात कहाँ समझ में आती है
ख्वाहिशें मुर्दा पड़ी थीं जा-बा-जा
दिल भी गोया एक कब्रिस्तान था.
बहुत खूब !!
हमेशा की तरह उम्दा ग़ज़ल
बहुत जबरदस्त!!
जवाब देंहटाएंHar baar itna gazab ka kaisa likh pate hain aap!
जवाब देंहटाएंसख्त था बाहर की दुनिया का सफ़र
जवाब देंहटाएंघर की चौखट लांघना आसान था.
जिन्दगी की मेजबानी क्या कहें
हर कोई दो रोज का मेहमान था.
इतनी बेचैनी भी होती है कहीं
मैं समंदर देखकर हैरान था.....
उम्दा गज़ल
जिन्दगी की मेजबानी क्या कहें
जवाब देंहटाएंहर कोई दो रोज का मेहमान था.
इतनी बेचैनी भी होती है कहीं
मैं समंदर देखकर हैरान था.
सख्त था बाहर की दुनिया का सफ़र
घर की चौखट लांघना आसान था.
बेहद उम्दा
बढ़िया गज़ल |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में
aadmi kai vash mai....sundar gajal hai
जवाब देंहटाएंbahut khoob!
जवाब देंहटाएंवाह .. क्या गज़ब के शेर हैं सभी इस लाजवाब गज़ल में ... किसी एक को कोट करना आसान नहीं देवेन्द्र जी ...
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