खता क्या है मेरी इतना बता दे.
फिर इसके बाद जो चाहे सजा दे.
अगर जिन्दा हूं तो जीने दे मुझको
अगर मुर्दा हूं तो कांधा लगा दे.
हरेक जानिब है चट्टानों का घेरा
निकलने का कोई तो रास्ता दे.
न शोहरत चाहिए मुझको न दौलत
मेरा हासिल है क्या मुझको बता दे.
अब अपने दिल के दरवाज़े लगाकर
हमारे नाम की तख्ती हटा दे.
जरा आगे निकल आने दे मुझको
मेरी रफ़्तार थोड़ी सी बढ़ा दे.
ठिकाना चाहिए हमको भी गौतम
ज़मीं गर वो नहीं देता, खला दे.
ठिकाना चाहिए हमको भी गौतम
ज़मीं गर वो नहीं देता, खला दे.
---देवेंद्र गौतम
न शोहरत चाहिए मुझको न दौलत
जवाब देंहटाएंतू मेरा नाम मिट्टी में मिला दे.
लो जी मिटटी में क्यों ....?
''तू मेरा नाम आँखों में बसा ले '' क्यों नहीं ?
बहुत खूब..........
जवाब देंहटाएंवैसे हीर जी की सलाह काबिले गौर है...
सादर
अनु
बहन हरकीरत जी! आपकी सलाह सर आखों पर. लेकिन चूंकि रदीफ़ दे है इसलिए ले का प्रयोग नहीं हो सकता. इसके लिए अलग से ग़ज़ल कहनी पड़ेगी. आपकी आपत्ति दरअसल नाम मिट्टी में मिला देने की गुज़ारिश से है तो इस मिसरे को बदल देता हूं.
जवाब देंहटाएंन शोहरत चाहिए मुझको न दौलत
मेरा हासिल है है क्या मुझको बता दे.
हरेक जानिब है चट्टानों का घेरा
जवाब देंहटाएंनिकलने का कोई तो रास्ता दे.. ज़िंदगी में ऐसे भी मोड़ आते हैं कभी-कभी। अच्छी ग़ज़ल
न शोहरत चाहिए मुझको न दौलत
जवाब देंहटाएंमेरा हासिल है क्या मुझको बता दे.
अब अपने दिल के दरवाज़े लगाकर
हमारे नाम की तख्ती हटा दे.
बहुत खूबसूरत गजल
अगर जिन्दा हूं तो जीने दे मुझको
जवाब देंहटाएंअगर मुर्दा हूं तो कांधा लगा दे.
बहुत अच्छी गज़ल
वाह ..बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गज़ल!
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल ...
जवाब देंहटाएंजबरदस्त शेर हैं सभी ... सुभान अल्ला ...
जवाब देंहटाएंइसके अपने ब्लॉग को समझने की खुशी. उपरोक्त लेख बहुत असाधारण है, और मैं वास्तव में अपने ब्लॉग और कहते हैं कि तुम व्यक्त पढ़ने का आनंद लिया. मैं वास्तव में वापस एक विशिष्ट आधार पर दिखाई देते हैं, एक विषय के भीतर बहुत अधिक पोस्ट की तरह. बाँटने के लिए धन्यवाद ... लिखते रहते हैं!!
जवाब देंहटाएं