एक सांचे में ढाल रखा था.
हमने सबको संभाल रखा था.
एक सिक्का उछाल रखा था.
और अपना सवाल रखा था.
सबको हैरत में डाल रखा था.
उसने ऐसा कमाल रखा था.
कुछ बलाओं को टाल रखा था.
कुछ बलाओं को पाल रखा था.
हर किसी पर निगाह थी उसकी
उसने सबका ख़याल रखा था.
गीत के बोल ही नदारत थे
सुर सजाये थे, ताल रखा था.
उसके क़दमों में लडखडाहट थी
उसके घर में बवाल रखा था.
उसकी दहलीज़ की रवायत थी
हमने सर पर रुमाल रखा था.
साथ तुम ही निभा नहीं पाए
हमने रिश्ता बहाल रखा था.
-देवेंद्र गौतम
हमने सबको संभाल रखा था.
एक सिक्का उछाल रखा था.
और अपना सवाल रखा था.
सबको हैरत में डाल रखा था.
उसने ऐसा कमाल रखा था.
कुछ बलाओं को टाल रखा था.
कुछ बलाओं को पाल रखा था.
हर किसी पर निगाह थी उसकी
उसने सबका ख़याल रखा था.
गीत के बोल ही नदारत थे
सुर सजाये थे, ताल रखा था.
उसके क़दमों में लडखडाहट थी
उसके घर में बवाल रखा था.
उसकी दहलीज़ की रवायत थी
हमने सर पर रुमाल रखा था.
साथ तुम ही निभा नहीं पाए
हमने रिश्ता बहाल रखा था.
-देवेंद्र गौतम
कुछ बलाओं को टाल रखा था.
जवाब देंहटाएंकुछ बलाओं को पाल रखा था.
अच्छी ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही बढिया
जवाब देंहटाएंहर किसी पर निगाह थी उसकी
जवाब देंहटाएंउसने सबका ख़याल रखा था.
वाह क्या बात है ... इतनी सारे काफिये ... लाजवाब गज़ल देवेन्द्र जी ... हर शेर कमाल है ..
कुछ बलाओं को टाल रखा था.
जवाब देंहटाएंकुछ बलाओं को पाल रखा था.
वाह...
बहुत खूब...
सादर
अनु
बढ़िया ग़ज़ल
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