एक लम्हा जिंदगी का आते-आते टल गया.
चांद निकला भी नहीं था और सूरज ढल गया.
अब हवा चंदन की खुश्बू की तलब करती रहे
जिसको जलना था यहां पर सादगी से जल गया.
धीरे-धीरे वक़्त ने चेहरे की रौनक छीन ली
होंठ से सुर्खी गयी और आंख से काजल गया.
आज मैं जैसा भी हूं तेरा करम है और क्या
तूने जिस सांचे में ढाला मैं उसी में ढल गया.
फिर उसूलों की किताबें किसलिए पढ़ते हैं हम
जिसको जब मौक़ा मिला इक दूसरे को छल गया.
अपना साया तक नहीं था, साथ जो देता मेरा
धूप में घर से निकलना आज मुझको खल गया.
बारहा हारी हुई बाज़ी भी उसने जीत ली
चलते-चलते यक-ब-यक कुछ चाल ऐसी चल गया.
---देवेंद्र गौतम
चांद निकला भी नहीं था और सूरज ढल गया.
अब हवा चंदन की खुश्बू की तलब करती रहे
जिसको जलना था यहां पर सादगी से जल गया.
धीरे-धीरे वक़्त ने चेहरे की रौनक छीन ली
होंठ से सुर्खी गयी और आंख से काजल गया.
आज मैं जैसा भी हूं तेरा करम है और क्या
तूने जिस सांचे में ढाला मैं उसी में ढल गया.
फिर उसूलों की किताबें किसलिए पढ़ते हैं हम
जिसको जब मौक़ा मिला इक दूसरे को छल गया.
अपना साया तक नहीं था, साथ जो देता मेरा
धूप में घर से निकलना आज मुझको खल गया.
बारहा हारी हुई बाज़ी भी उसने जीत ली
चलते-चलते यक-ब-यक कुछ चाल ऐसी चल गया.
---देवेंद्र गौतम
बारहा हारी हुई बाज़ी भी उसने जीत ली
जवाब देंहटाएंचलते-चलते यक-ब-यक कुछ चाल ऐसी चल गया.
वाह !!
क्या कहने !!!
चांद निकला भी नहीं था और सूरज ढल गया.
ये अकेला मिसरा ख़ुद में क्या कुछ समेटे हुए है ,,,बहुत ख़ूब !!
वाह.
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन गजल.
:-)
वाह .... बहुत खूब ....हर शेर उम्दा
जवाब देंहटाएंअब हवा चंदन की खुश्बू की तलब करती रहे
जवाब देंहटाएंजिसको जलना था यहां पर सादगी से जल गया.
लाज़वाब रचना....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत पसंद आई ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंumda gajal , badhayi
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल |
जवाब देंहटाएंधीरे-धीरे वक़्त ने चेहरे की रौनक छीन ली
होंठ से सुर्खी गयी और आंख से काजल गया.
अगर कुछ ऐसा हो जाये ......
धीरे-धीरे वक़्त ने चेहरे की रौनक छीन ली
होंठ से सुर्खी चुरा माथे कि बिंदिया छीन ली .
बहुत सुन्दर लिखा है |
Read more: http://www.gazalganga.in/2012/09/blog-post_7.html#ixzz25ybrFIgj
आपके भाव बात को अवश्य ज्यादा स्पष्ट करते हैं मीनाक्षी जी! लेकिन तकनीकी रूप से इसमें कठिनाई है.
जवाब देंहटाएंअब हवा चंदन की खुश्बू की तलब करती रहे
जवाब देंहटाएंजिसको जलना था यहां पर सादगी से जल गया.
बहुत ही कमाल का शेर है देवेन्द्र जी ... इस शेर को बार बार पढ़ने का मन करता है ... सादगी से कही गहरी बात ...
बहुत ही बेहतरीन गजल |
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