कत्ता
अपनी बातें गौर से सुनने की जिद ठाने हुए.बीच रस्ते में खड़े हैं रस्सियां ताने हुए.
माजरा क्या है हमें कोई बताता ही नहीं
कौन हैं ये लोग? न जाने, न पहचाने हुए.
इस ज़मीं पे आजतक जितने भी मयखाने हुए.
जिंदगी को देखने के उतने पैमाने हुए.
लोग कहते हैं यहां ऐसे भी दीवाने हुए.
दर्दो-गम जिनके लिए उल्फत के नजराने हुए.
रोज जिनकी राह में शमए जलाती थी हवा
रोज अंगारों से खेले ऐसे परवाने हुए.
एक जंगल था यहां पर दूर तक फैला हुआ
बस्तियां बसती गयीं और दफ़्न वीराने हुए.
रंग गिरगिट का बदल जाता है मौसम देखकर
वो कभी अपने भी थे? जो आज बेगाने हुए.
आजतक लेकिन न मिल पाया कभी अपना सुराग
मंजिलें जानी हुई, रस्ते भी पहचाने हुए.
---देवेंद्र गौतम
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंरंग गिरगिट का बदल जाता है मौसम देखकर
जवाब देंहटाएंवो कभी अपने भी थे? जो आज बेगाने हुए.
जबरदस्त कटाक्ष आभार अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
आजतक लेकिन न मिल पाया कभी अपना सुराग
जवाब देंहटाएंमंजिलें जानी हुई, रस्ते भी पहचाने हुए.
bahut badhiya gazal
बढ़िया लगी ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंएक जंगल था यहां पर दूर तक फैला हुआ
जवाब देंहटाएंबस्तियां बसती गयीं और दफ़्न वीराने हुए.
बसाहट ही खूबसूरत शेर .... यूं तो हर शेर लाजवाब अहि पर इस शेर में कुछ खास है जो दिल में उतर जाता है ...
साथ लिए जा रहा हूं इसे ...
एक जंगल था यहां पर दूर तक फैला हुआ
जवाब देंहटाएंबस्तियां बसती गयीं और दफ़्न वीराने हुए.
kya gazab kee baat kahi hai....