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रविवार, 24 मार्च 2013

पूछें अगर वो नाम तो मजहब भी बोलना

अपनी हरेक बात का मतलब भी बोलना.
लहज़ा बदल के बोलना तुम जब भी बोलना.

उनकी हरेक हां में मिलानी पड़ेगी हां
वो दिन को शब कहें तो उसे शब भी बोलना.

ताकि किसी तरह की मलामत नहीं रहे
पूछें अगर वो नाम तो मजहब भी बोलना.

मैंने सभी की बात सुनी और चुप रहा
कुछ चाहते हैं आज मेरे लब भी बोलना.

बाबू को याद रहती नहीं है किसी की बात
कुछ बात भूल जाते हैं साहब भी बोलना.

हांलाकि मैं दिखा चुका हूं सच का आईना
वो चाहते नहीं हैं मगर अब भी बोलना.

---देवेंद्र गौतम

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर .
    ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
    यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.

    मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
    चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

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  2. बढ़िया गजल कही है भाई....इसी तरह कहते रहिये.

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छे शेर निकाले हैं....मुबारक हो....

    जवाब देंहटाएं

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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