कागजी इंकलाब की बातें.
बंद करिए किताब की बातें.
कितने अय्यार हैं जो करते हैं
हड्डियों से कबाब की बातें.
पढ़ते रहते हैं हम रिसालों में
कैसे-कैसे अज़ाब की बातें.
नींद आखों से दूर होती है
जब निकलती हैं ख्वाब की बातें.
और थोड़ा करीब आते तो
खुल के होतीं हिज़ाब की बातें.
कौन सुनता है इस जमाने में
एक ख़ाना-खराब की बातें.
---देवेंद्र गौतम
बंद करिए किताब की बातें.
कितने अय्यार हैं जो करते हैं
हड्डियों से कबाब की बातें.
पढ़ते रहते हैं हम रिसालों में
कैसे-कैसे अज़ाब की बातें.
नींद आखों से दूर होती है
जब निकलती हैं ख्वाब की बातें.
और थोड़ा करीब आते तो
खुल के होतीं हिज़ाब की बातें.
कौन सुनता है इस जमाने में
एक ख़ाना-खराब की बातें.
---देवेंद्र गौतम
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर .आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया. सचमुच अभी कागजी क्रांति खूब हो रही है.. कोई लाल किताब पढ़ रहा है तो कोई गेरूआ. कोई हरा तो कोई पीला. कोई क्राति का जेरोक्स ला रहा है तो कोई उसके आयात निर्यात का धंधा कर रहा है. क्रांति का नया इतिहास लिखने का प्रयास कोई नहीं कर रहा हैं. बिल्कुल बंद होनी चाहिये यह किताबी बातें. भारत में क्रांति होगी तो क्या उसका माडल अपना नहीं होगा.
जवाब देंहटाएंBehtreen gazal ... Sach ka aina hain sabhi sher ...
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