(जेएनयू प्रकरण पर)
तिल का ताड़ बना बैठे.
कैसी आग लगा बैठे.
वही खता दुहरा बैठे.
फिर इतिहास भुला बैठे.
फर्क दोस्त और दुश्मन का
कैसे आप भुला बैठे.
पुरखों के दामन में वो
गहरा दाग लगा बैठे.
सबका हवन कराने में
अपने हाथ जला बैठे.
उसकी गरिमा रख लीजे
जिस कुर्सी पर जा बैठे.
बैठे-बैठे वो हमको
कितने ख्वाब दिखा बैठे.
किस दुनिया के वासी हैं
किस दुनिया में जा बैठे.
सारी रामायण कह दी
असली बात भुला बैठे.
-देवेंद्र गौतम
तिल का ताड़ बना बैठे.
कैसी आग लगा बैठे.
वही खता दुहरा बैठे.
फिर इतिहास भुला बैठे.
फर्क दोस्त और दुश्मन का
कैसे आप भुला बैठे.
पुरखों के दामन में वो
गहरा दाग लगा बैठे.
सबका हवन कराने में
अपने हाथ जला बैठे.
उसकी गरिमा रख लीजे
जिस कुर्सी पर जा बैठे.
बैठे-बैठे वो हमको
कितने ख्वाब दिखा बैठे.
किस दुनिया के वासी हैं
किस दुनिया में जा बैठे.
सारी रामायण कह दी
असली बात भुला बैठे.
-देवेंद्र गौतम
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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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