और कुछ दूर काफिला तो चले.
हम कहां हैं, हमें पता तो चले.
हमसफर की तलब नहीं हमको
साथ कदमों के रास्ता तो चले.
बंद कमरे में दम निकलता है
इक जरा सांस भर हवा तो चले.
हर हकीक़त बयान कर देंगे
आज बातों का सिलसिला तो चले.
अपनी मर्जी के सभी मालिक हैं
कोई कानून-कायदा तो चले.
वो अकेले कहां-कहां जाते
साथ लेकर कोई चला तो चले.
हम कहां हैं, हमें पता तो चले.
हमसफर की तलब नहीं हमको
साथ कदमों के रास्ता तो चले.
बंद कमरे में दम निकलता है
इक जरा सांस भर हवा तो चले.
हर हकीक़त बयान कर देंगे
आज बातों का सिलसिला तो चले.
अपनी मर्जी के सभी मालिक हैं
कोई कानून-कायदा तो चले.
वो अकेले कहां-कहां जाते
साथ लेकर कोई चला तो चले.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-06-2016) को "चुनना नहीं आता" (चर्चा अंक-2371) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वेहतरीन रचना । मुझे पसंद आयी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... सांस भर हवा की तलाश तो सभी को है ... ;लाजवाब ग़ज़ल ...
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