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सोमवार, 11 जून 2018

चार तिनकों का आशियाना हुआ

चार तिनकों का आशियाना हुआ,
आंधियों में मेरा ठिकाना हुआ।

जिसको देखे बिना करार न था,
उसको देखे हुए जमाना हुआ।

मरना जीना तो इस जमाने मेंं,
मिलने-जुलने का इक बहाना हुआ।

हर कदम मुश्किलों भरा यारब
किस मुहूरत में मैं रवाना हुआ।

और दुश्वारियां न कर पैदा,
बस बहुत सब्र आजमाना हुआ।

भूल जाएंगे सब मेरा किस्सा,
मैं गए वक़्त का फसाना हुआ।

शुक्रवार, 8 जून 2018

ग़म की धूप न खाओगे तो खुशियों की बरसात न होगी


ग़म की धूप न खाओगे तो खुशियों की बरसात न होगी.
दिन की कीमत क्या समझोगे जबतक काली रात न होगी.

जीवन के इक मोड़ पे आकर हम फिर से मिल जाएं भी तो
लब थिरकेंगे, दिल मचलेगा, पर आपस में बात न होगी.

पूरी बस्ती सन्नाटे की चादर ओढ़ के लेट चुकी है
ऐसे में तूफान उठे तो कुछ हैरत की बात न होगी.

हम अपने सारे मोहरों की चाल समझते हैं साहब
बाजी अब चाहे जैसी हो लेकिन अपनी मात न होगी.

जिस दिन उसमें नूर न होगा, आप उगेगा, आप ढलेगा
चांद तो होगा साथ में लेकिन तारों की बारात न होगी.

गुरुवार, 7 जून 2018

अच्छे दिनों का कौन करे इंतजार और.


आखिर कहां से लाइए सब्रो-करार और.
अच्छे दिनों का कौन करे इंतजार और.

कुछ रहगुजर पे धूल भी पहले से कम न थी
कुछ आपने उड़ा दिए गर्दो-गुबार और.

बिजली किधर से दौड़ रही थी पता नहीं
हर तार से जुड़ा हुआ था एक तार और.

शायद अभी यक़ीन का दर हो खुला हुआ
चक्कर लगा के देखते हैं एक बार और.

हम उनकी अक़ीदत की कहानी भी कहेंगे
चढ़ने दे अभी आंख में थोड़ा खुमार और.

हमलोग तो बिगड़े हुए हालात हैं गोया
खाना है अभी वक्त के चाबुक की मार और.

मैंने कहा किसी की दुआ काम न आई
उसने कहा ख़ुदा पे करो ऐतबार और.

आसां नहीं है वक्त के फंदों को काटना
कितना भी करा लाइए चाकू में धार और

गौतम जो सामने है उसी को कुबूल कर
माना बचे हुए हैं अभी जां-निसार और.