एक चिनगारी की है दरकार
जैसी भी सही
इसलिए तो चार पहिए की तलब
उनको लगी
पोर्टिको को चाहिए थी कार
जैसी भी सही.
हर सड़क पे इक सफर जारी रहे
मेरे खुदा!
काफिला चलता रहे रफ्तार
जैसी भी सही.
आखिरश वो वक्त के मलवे में दबते
रह गए
तोड़ने निकले थे जो दीवार
जैसी भी सही.
चार टुकड़ों में उसे करने का फन हमको पता
पास तो आए कोई तलवार जैसी
भी सही.
धुंद
में लिपटे सही मंजर मगर दिखते रहें
रौशनी
कायम रहे बीमार जैसी भी सही.
कुछ दरारें ढूंढ लेगी और
बहती ही रहेगी
रुक नहीं सकती नदी की धार
जैसी भी सही.
-देवेंद्र गौतम
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आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब
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