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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

जो हमारे प्यार का अंतिम निशां था, मिट गया?

 

इक नगर की इक गली में इक मकां था, मिट गया.

जो हमारे प्यार का अंतिम निशां था, मिट गया?

 

कुछ गुमां दिल में उठा, टूटे तअल्लुक भी कई

तल्खियां बढ़ती गईं, जो दर्मियां था मिट गया.

 

मेरे हिस्से की जो थोड़ी सी ज़मीं थी गुम हुई

मेरे हिस्से का जो थोड़ा आस्मां था मिट गया.

 

जो हकीकत थी मेरे दिल में रकम होती गई  

एक गोशे में कहीं दिल का गुमां था मिट गया.

 

अब कहीं कोई विरासत ही नहीं बाकी रही

रहगुजर पे जो नकूशे-कारवां था मिट गया.

 

राख के अंदर दबी चिनगारियों को क्या पता

आग की लपटों में जितना भी धुआं था मिट गया.

-देवेंद्र गौतम

1 टिप्पणी:

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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