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शनिवार, 14 जनवरी 2012

खून में डूबे हुए थे रास्ते सब इस नगर के

खून में डूबे हुए थे रास्ते सब इस नगर के.
हम जो गलियों में छुपे थे, घाट के थे और न घर के.

ठीक था सबकुछ यहां तो लोग अपनी हांकते थे
खतरा मंडराने लगा तो चल दिए इक-एक कर के.

हादिसा जब कोई गुज़रा या लुटा जब चैन दिल का
मैनें समझा कोई रावण ले गया सीता को हर के.


अपने तलवे थामकर इक रोज वो कहने लगा 
चांदनी रातों में भी सब जायके हैं दोपहर के.

शुहरत, दौलत और ताक़त, जिंदगी भर की सियासत
गौर से देखा तो जाना सब छलावे हैं नज़र के.

----देवेंद्र गौतम

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... सामयिक और सार्थक शेर हैं इस गज़ल के ...

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  2. शोहरत, दौलत और ताक़त, जिंदगी भर की सियासत
    गौर से देखा तो जाना सब छलावे हैं नज़र के...waakai, bahut badhiyaa

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  3. क्या बात है. बेहतरीन गज़ल.


    सादर.

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  4. खून में डूबे हुए थे रास्ते सब इस नगर के.
    हम जो गलियों में छुपे थे, घाट के थे और न घर के.

    वाह !बहुत ख़ूब !!

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  5. मन में बसे अच्छे खयालात का
    बहुत अच्छा इज़हार !
    वाह !!

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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