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सोमवार, 18 मार्च 2013

बंद करिए किताब की बातें

कागजी इंकलाब की बातें.
बंद करिए किताब की बातें.

कितने अय्यार हैं जो करते हैं
हड्डियों से  कबाब की बातें.

पढ़ते रहते हैं हम रिसालों में
कैसे-कैसे अज़ाब की बातें.

नींद आखों से दूर होती है
जब निकलती हैं ख्वाब की बातें.

और थोड़ा करीब आते तो
खुल के होतीं हिज़ाब की बातें.

कौन सुनता है इस जमाने में
एक ख़ाना-खराब की बातें.

---देवेंद्र गौतम

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

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  2. .बहुत सुन्दर .आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  3. बहुत बढ़िया. सचमुच अभी कागजी क्रांति खूब हो रही है.. कोई लाल किताब पढ़ रहा है तो कोई गेरूआ. कोई हरा तो कोई पीला. कोई क्राति का जेरोक्स ला रहा है तो कोई उसके आयात निर्यात का धंधा कर रहा है. क्रांति का नया इतिहास लिखने का प्रयास कोई नहीं कर रहा हैं. बिल्कुल बंद होनी चाहिये यह किताबी बातें. भारत में क्रांति होगी तो क्या उसका माडल अपना नहीं होगा.

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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