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रविवार, 15 सितंबर 2019

गज़ल ( चंद्रयान-2 की सफलता पर)


अपना इसरो कर गया कैसा करिश्मा देखना.
चांद को अब देखना अपना तिरंगा देखना.

चांद को खंगाल कर रख दे न थोड़ी देर में
अपना विक्रम नींद के पहलू से निकला देखना.

इक भगीरथ तप रहा है फिर हिमालय पर कहीं
स्वर्ग से इकबार फिर उतरेगी गंगा देखना.

हौसले की लह्र सी महसूस करना दोस्तो
आसमां पर जब कोई उड़ता परिंदा देखना.

(अब दूसरे रंग के शेर)
उनको सच्चाई नज़र आती नहीं, क्या बात है
उनकी आंखों पर पड़ा है कैसा पर्दा देखना.

जितनी कब्रें हैं उखाड़ो, गौर से देखो सही
गैरमुमकिन तो नहीं मुरदे को जिन्दा देखना.

जब तलक कटती नहीं उसकी ज़बां, बोलेगा वो
चारो जानिब नाच भी नाचेगा नंगा देखना.

शनिवार, 7 सितंबर 2019

माल मिर्जा का है, उड़ाओ जी

सच जहां तक छुपे, छुपाओ जी.
झूठ का सिलसिला बढ़ाओ जी.

भूत दिखने लगे हरेक चेहरा
हमको इतना तो मत डराओ जी.

कौन तुमसे हिसाब मांगेगा
माल मिर्जा का है उड़ाओ जी.

अब समंदर की क्या जरूरत है
एक चुल्लू में डूब जाओ जी

सब दुकानों का हाल खस्ता है
अपना सिक्का अभी चलाओ जी.

मेज़बानों का तकाजा समझो
खुद न खाओ हमें खिलाओ जी.

सब खरीदार हो गए रुखसत
अब तो अपनी दुकां उठाओ जी.

इस अंधेरे में कुछ नज़र आए
इक दिया तो कहीं जलाओ जी.

हाथ पर हाथ धर के मत बैठो
अपनी ताकत भी आजमाओ जी.

-देवेंद्र गौतम

मंगलवार, 3 सितंबर 2019

कातिलों के हाथ में शमशीर दे बैठे हैं हम




-देवेंद्र गौतम

अपनी बर्बादी की हर तहरीर दे बैठे हैं हम.
अहमकों के हाथ में तक़दीर दे बैठे हैं हम.

अपने बाजू काटकर उसके हवाले कर चुके
जितने तरकश में पड़े थे तीर दे बैठे हैं हम.

हाथ में माचिस की तीली, आंख में चिनगारियां
इक सुलगते शहर की तसवीर दे बैठे हैं हम.

क्या पता था चैन से सोने नहीं देगा कभी
जाने किस-किस ख्वाब की ताबीर दे बैठे हैं हम

एक-एक करके जकड़ लेंगी हमारी ख्वाहिशें
अपने-अपने नाम की जंजीर दे बैठे हैं हम.

अब तो अपनी गर्दनों की फिक्र करनी है हमें
कातिलों के हाथ में शमशीर दे बैठे हैं हम.

कुछ बचा रखा है हमने खुश्क मौसम के लिए
वो समझता है कि सब जागीर दे बैठे हैं हम.

रविवार, 1 सितंबर 2019

अनाड़ी हाथों में पासा है खेल क्या होगा



 कसेगी या न कसेगी नकेल क्या होगा.
अनाड़ी हाथों में पासा है, खेल क्या होगा

उड़ेल सकता है जितना उड़ेल, क्या होगा.
छुछुंदरों पे चमेली का तेल, क्या होगा.

तुम्हारे हाथ में पत्थर है, चला सकते हो
अगर उठा लिया हमने गुलेल, क्या होगा.

हमें ज़मीं की तहों का ख़याल रहता है
वो पूछते हैं सितारों का खेल क्या होगा.

जुनूं की कार ठिकाने पे कभी पहुंची है
धकेल सकता है जितना धकेल, क्या होगा.

करार हो भी गया तो वो टिक न पाएगा
भला अंधेरे उजाले का मेल क्या होगा.

कोई परिंदा कहीं पर न मार पाएगा
हरेक घर को बना देंगे जेल, क्या होगा.

-देवेंद्र गौतम



शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

चार दोहे


गूंगी नगरी, बहरा राजा, झूठी ठाट और बाट.
समय चटाई पर लेटा है, खड़ी है सबकी खाट.

सूखी धरती पानी मांगे, दलदल मांगे धूप.
दाता कहता बस रहने दो, जिसका जैसा रूप.

धनवानों पर धन बरसाए, निर्धन पऱ प्रहार.
यारब! तेरी दुनिया न्यारी, लीला अपरंपार.

हर याचक को पता है अपने दाता की औकात.
अधजल गगरी जब छलकेगी, बांटेगा खैरात.

-देवेंद्र गौतम

कत्आ़


घुड़कियां दे के हमें कब तलक डराएगा
वो सच को झूठ के पर्दे में जब छुपाएगा.
हरेक सच को इशारों में अयां कर देंगे
जबां पे ताला कहां तक कोई लगाएगा.
-देवेंद्र गौतम

सोमवार, 26 अगस्त 2019

कत्आ़


उसे मरना है उसकी मौत को आसान होने दो.
वो कुर्बानी का बकरा है उसे कुर्बान होने दो.
वो वहशी है चलो माना ज़मी के बोझ जैसा है
उसे इंसां बना सकते हो तो इनसान होने दो।

-देवेंद्र गौतम

रविवार, 18 अगस्त 2019

घर के अंदर घर जला देने की साज़िश हो रही है


मौसमों की किस कदर हमपर नवाज़िश हो रही है.
रोज आंधी आ रही है, रोज बारिश हो रही है.

रात-दिन सपने दिखाए जा रहे हैं हम सभी को
बैठे-बैठे आस्मां छूने की कोशिश हो रही है.

शक के घेरे में पड़ोसी भी है लेकिन दरहक़ीकत
घर के अंदर घर जला देने की साज़िश हो रही है.

जंगलों में आजकल इनसान देखे जा रहे हैं
और शहरों में दरिंदों की रहाइश हो रही है.

अब यहां कुदरत की खुश्बू की कोई कीमत नहीं है
हर तरफ कागज के फूलो की नुमाइश हो रही है.