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रविवार, 30 जनवरी 2022

मकीं को ढूंढते खाली मकान हैं साहब!

शिकारी जा चुके लेकिन मचान हैं साहब!

मकीं को ढूंढते खाली मकान हैं साहब!

 

वो जिनको तीर चलाने का फन नहीं आता

उन्हीं के हाथ में सारे कमान हैं साहब!

 

जो बोल सकते थे अपनी ज़ुबान बेच चुके

जो बेज़ुबान थे वो बेज़ुबान हैं साहब!

 

हमारी बात अदालत तलक नहीं पहुंची

जो दर्ज हो न सके वे बयान हैं साहब!

 

बस उनके खून-पसीने की कमाई दे दो

ज़मीं को सींचने वाले किसान हैं साहब!

 

जड़ों से उखड़ा हुआ पेड़ हूं मगर अबतक

मेरे वजूद के कुछ तो निशान हैं साहब!

-देवेंद्र गौतम


10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... हकीकत में डूबे शेर ...
    लाजवाब गज़ल है ...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 2 फरवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह क्या बात कही आपने👍
    लाजवाब गजल...👌

    जवाब देंहटाएं
  4. वो जिनको तीर चलाने का फन नहीं आता

    उन्हीं के हाथ में सारे कमान हैं साहब!

    हर शेर गज़ब । बेहतरीन 👌👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
  5. बस उनके खून-पसीने की कमाई दे दो

    ज़मीं को सींचने वाले किसान हैं साहब
    वाह!!!
    लाजवाब गजल।

    जवाब देंहटाएं
  6. हमारी बात अदालत तलक नहीं पहुंची
    जो दर्ज हो न सके वे बयान हैं साहब!
    हर एक शेर दिल में उतरता हुआ।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़सल ज़नाब @@

    जवाब देंहटाएं
  8. This post will assist the internet people for building up new blog or even a weblog from start to end.

    जवाब देंहटाएं

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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