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शनिवार, 9 अप्रैल 2011

एक कत्ता

(जंतर-मंतर के नाम)

दो कदम पीछे हटे हैं वो अभी 
एक कदम आगे निकलने के लिए.
ये सियासत का ही एक अंदाज़ है 
झुक गए हैं और तनने के लिए.

-----देवेंद्र गौतम 

10 टिप्‍पणियां:

  1. ये सियासत का ही एक अंदाज़ है
    झुक गए हैं और तनने के लिए.

    वाह..क्या खूब ...कटाक्ष किया है.

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  2. बहुत सुन्दर कता है देवेन्द्र जी. निश्चित रूप से जनादेश के सामने झुकना भी कुशल राजनीति और प्रत्युत्पन्नमति का ही परिणाम है.

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  3. सरोकार से जुड़ना
    अच्छा है ...

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  4. भाई नीरज गोस्वामी जी!
    इच्छा तो मेरी भी थी कि कत्ता के जरिये कही हुई मेरी बात गलत साबित हो..लेकिन अन्ना हजारे के खिलाफ जिस तरह कई मोर्चे खोल दिए गए हैं और आन्दोलन में फूट डालने की जिस तरह कोशिश चल रही है उसे देखते हुए लगता नहीं कि बात गलत साबित होगी. बहरहाल बदली परिस्थितियों पर मैंने अपने दूसरे ब्लॉग "सुनो भई साधो.." में एक टिपण्णी "खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे.." पोस्ट की है. आपके मेल पर उसका लिंक भेजा भी है. समय मिले तो उसे देखिएगा.
    ---देवेन्द्र गौतम

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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