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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

नज़र के सामने जो कुछ है अब सिमट जाये

ग़मों की धुंध जो छाई हुई है छंट जाये.
कुछ ऐसे ख्वाब दिखाओ कि रात कट जाये.

नज़र के सामने जो कुछ भी है सिमट जाये.
गर आसमान न टूटे, ज़मीं ही फट जाये.


मेरे वजूद का बखिया जरा संभल के उधेड़
हवा का क्या है भरोसा, कहीं पलट जाये.

मैं तय करूंगा हरेक लम्हा इक सदी का सफ़र
कि मेरी राह का पत्थर जरा सा हट जाये.

उसे पता है कि किस राह से गुज़रना है
वो कोई रूह नहीं है कि जो भटक जाये.

मैं अपनी आंख में सूरज के अक्स लाया हूं
अंधेरी रात से कह दो कि अब सिमट जाये.

-----देवेंद्र गौतम 

11 टिप्‍पणियां:

  1. मैं अपनी आंख में सूरज के अक्स लाया हूं
    अंधेरी रात से कह दो कि अब सिमट जाये.


    वाह!!बहुत खूब!!!

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  2. उसे पता है कि किस राह से गुज़रना है
    वो कोई रूह नहीं है कि जो भटक जाये.

    मैं अपनी आंख में सूरज के अक्स लाया हूं
    अंधेरी रात से कह दो कि अब सिमट जाये.
    Nihayat sundar panktiyan!

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  3. बहुत दिनों बाद आये देवेन्द्र जी
    लेकिन एक खूबसूरत ग़ज़ल का तोहफा लेकर आये
    "कुछ ऐसे ख्वाब दिखाओ, क रात कट जाए..."
    मन के खाली पड़े पन्ने पर जैसे अचानक कुछ लिख दिया गया हो
    वहाँ के 'कुछ ना होने' को कुछ लफ्ज़ मिल गए हों जैसे ... वाह
    ग़ज़ल के तमाम अश`आर
    इक अजब-सी ज़हनियत से रु.ब.रु करवा रहे हैं .
    असर,,, देर तक चलेगा !

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  4. "कुछ ऐसे ख्वाब दिखाओ, कि रात कट जाए..."
    बेहद ख़ूबसूरत मिसरा और अपने आप जाने क्या कुछ समेटे हुए मुकम्मल शेर की हैसियत रखता है
    बहुत ख़ूब !!

    मैं अपनी आंख में सूरज के अक्स लाया हूं
    अंधेरी रात से कह दो कि अब सिमट जाये.
    बड़े हौसले का शेर जो ग़ज़ल के तक़ाज़ों को भी बड़ी ख़ूबसूरती से पूरा कर रहा है
    वाह !!

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  5. shuru ke dono sher beshak udasi liye hue hain ...magar behad khoobsoorat lage ...

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  6. मैं अपनी आंख में सूरज के अक्स लाया हूं
    अंधेरी रात से कह दो कि अब सिमट जाये.
    वाह ...बहुत खूब ।

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  7. रवीन्द्रनाथ सिन्हा17 दिसंबर 2011 को 9:40 am बजे

    भाई देवेन्द्र जी,
    आपकी सभी गजलें बहुत सुंदर होती हैं | ईश्वर आपको शक्ति प्रदान करे कि आप इसी प्रकार से बराबर लिखते रहें| हमारी सभी शुभ कामनाएं आपके साथ है |

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  8. मेरे वजूद का बखिया जरा संभल के उधेड़
    हवा का क्या है भरोसा, कहीं पलट जाये.

    बढ़िया गज़ल

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  9. मैं अपनी आंख में सूरज के अक्स लाया हूं
    अंधेरी रात से कह दो कि अब सिमट जाये.

    क्या बात है सर जी. बधाई स्वीकार करें.

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कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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