समर्थक

बुधवार, 25 जुलाई 2012

हमसफ़र कोई न था फिर भी सफ़र करता रहा

अपनी सारी ख्वाहिशों को दर-ब-दर करता रहा.
हमसफ़र कोई न था फिर भी सफ़र करता रहा.

एक तुम जिसको किसी पर भी नहीं आया यकीं
एक मैं जो हर किसी को मोतबर करता रहा.

बेघरी ने तोड़ डाला था उसे अंदर  तलक
इसलिए वो हर किसी के दिल में घर करता रहा .

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को

कांटों से भरी शाख पर खिलते गुलाब को.
हमने क़ुबूल कर लिया कैसे अज़ाब को.

दिल की नदी में टूटते बनते हुबाब को.
देखा नहीं किसी ने मेरे इज़्तराब को.

चेहरों से झांकते नहीं जज़्बात आजकल
रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को.

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

बाधा दौड़


बंद आंखों के सामने है
अतृप्त इच्छाओं का एक कब्रिस्तान......
हर कब्र से उभरती हैं
तरह-तरह की आकृतियां

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

देवता जितने भी थे पत्थर के थे

कुछ ज़मीं के और कुछ अम्बर के थे.
अक्स  सारे  डूबते  मंज़र  के  थे.

कुछ इबादत का सिला मिलता न था
देवता जितने भी थे पत्थर के थे.

दिल में कुछ, होठों पे कुछ, चेहरे पे कुछ
किस कदर मक्कार हम अंदर के थे.

रविवार, 1 जुलाई 2012

पूरा करें तो कैसे करें दास्तान को

पूरा करें तो कैसे करें दास्तान को.
हर पल बदल रहे हैं वो अपने बयान  को.

इस घर की कहानी भी अजीबो-गरीब है
मेहमां बना के रख दिया है मेज़बान को.