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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को

कांटों से भरी शाख पर खिलते गुलाब को.
हमने क़ुबूल कर लिया कैसे अज़ाब को.

दिल की नदी में टूटते बनते हुबाब को.
देखा नहीं किसी ने मेरे इज़्तराब को.

चेहरों से झांकते नहीं जज़्बात आजकल
रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को.


लम्हों की मौज ले गयी माजी के सब वरक़
अब तुम  कहां से लाओगे यादों के बाब को.

बेचेहरगी ने थाम लिया होगा उनका हाथ
चेहरे से फिर हटा लिया होगा नकाब को.

ऐसे भी कुछ सवाल थे जो हल न हो सके
ताउम्र ढूढ़ते रहे जिनके जवाब को.

तहजीब के फलक पे सितारों के दर्मियां
आंखें तलाशती रहीं आवारा ख्वाब को.

सबकी नज़र में खार सा चुभने लगा था वो
देखा था जिस किसी ने मेरे इन्तखाब को.

वो जिनकी दस्तरस में है सिमटा हुआ निजाम
दावत भी वही दे रहे हैं इन्कलाब को.

हम यूं नवाजते हैं उन्हें अपने मुल्क में
 जैसे कोई शिकार नवाज़े उकाब को.


पहले हमें कबाब में दिखती थीं हड्डियां
अब हड्डियों में देखते हैं हम कबाब को.


गौतम हमारे बीच में दीवार क्यों रहे
अबके तुम अपने साथ न लाना हिजाब को.

----देवेंद्र गौतम






20 टिप्‍पणियां:

  1. तहजीब के फलक पे सितारों के दर्मियां
    आंखें तलाशती रहीं आवारा ख्वाब को.

    बहुत शानदार- बधाई.

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  2. ऐसे भी कुछ सवाल थे जो हल न हो सके
    ताउम्र ढूढ़ते रहे जिनके जवाब को.

    sach baat kahi hai is sher men.

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  3. वाह.....
    बेहतरीन गज़ल...
    दाद कबूल करें
    सादर
    अनु

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  4. वाह ... बहुत खूब ... लाजवाब प्रस्‍तुति।

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  5. दिल की नदी में टूटते बनते हुबाब को.
    देखा नहीं किसी ने मेरे इज़्तराब को.

    kya baat hai !bahut khoob !!


    ऐसे भी कुछ सवाल थे जो हल न हो सके
    ताउम्र ढूढ़ते रहे जिनके जवाब को.

    waah !!

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  6. चेहरों से झांकते नहीं जज़्बात आजकल
    रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को.

    ...मौजूदा दौर के इंसान की सही व्याख्या

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  7. चेहरों से झांकते नहीं जज़्बात आजकल
    रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को.

    लम्हों की मौज ले गयी माजी के सब वरक़
    अब तुम कहां से लाओगे यादों के बाब को.

    बहुत खूब ... खूबसूरत गजल

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  8. तहजीब के फलक पे सितारों के दर्मियां
    आंखें तलाशती रहीं आवारा ख्वाब को.

    bahut badhiya gazal

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  9. खूबसूरत गजल लाजवाब प्रस्‍तुति.

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  10. बेचेहरगी ने थाम लिया होगा उनका हाथ
    चेहरे से फिर हटा लिया होगा नकाब को.

    वाह ... देवेन्द्र जी ... क्या कमाल की गज़ल है .. कितनी मासूमियत है इस शेर में ... बहुत ही उम्दा
    और आपकी सिगरेट वाली गज़ल ने तो सच में कमाल किया है ... आपका अंदाज़ हमेशा ही लाजवाब है ...

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  11. तहजीब के फलक पे सितारों के दर्मियां
    आंखें तलाशती रहीं आवारा ख्वाब को.

    सबकी नज़र में खार सा चुभने लगा था वो
    देखा था जिस किसी ने मेरे इन्तखाब को.

    ये पूरी गज़ल ही कमाल की है 3-4 बार पढी। बधाई।

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  12. गौतम जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'गजलगंगा' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 26 जुलाई को 'रखते है लोग जिल्द में दिल की किताब को' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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  13. तहजीब के फलक पे सितारों के दर्मियां
    आंखें तलाशती रहीं आवारा ख्वाब को
    वाह!क्या बात है!
    बहुत बढ़िया गज़ल कही है आप ने.

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  14. बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित ....

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  15. चेहरों से झांकते नहीं जज़्बात आजकल
    रखते हैं लोग जिल्द में दिल की किताब को.

    Awesome !!

    .

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आज ग़ालिब गज़लसरा न हुआ.
---ग़ालिब

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